आज चाँद बड़ा उदास है । कुछ भी अच्छा नही लग रहा ,चाँद डर सा गया है आज मानव मुझ तक भी पहुच गया । न जाने क्या -क्या समस्याए झेलनी पड़ेगी ।
यह मनुष्य भी अजीब प्राणी है पहले धरती को गन्दा किया और अब चाँद पर भी पहुच गए। बेचारा चाँद बहुत चिंतित है । उसे यह डर हो गया है की अब मेरी शीतलता भी गर्माहट में बदल जायेगी । मेरा उजला रूप काला हो जाएगा और मेरी रौशनी माद्यम पड़ जायेगी ।
चाँद अपनी उदासी को धरती से बाटता है और पूछता है कि तुम इन मनुष्यों को कैसे झेलती हो ?यह बहुत गंदे है ?इनकी वजह से ही तुम्हारी ख़तम हो गई ?गंगा कि निर्मलता चली गई ?और तो और ,समुद्र भी उबलने लगा है ?
धरती कहती है ---हे चाँद शहनशील बनो , अधिक व्याकुलता ठीक नही है । अब तक मै इनका बोझ धोती रही हु । सारे सुख -दुःख मैंने उठाये , और अब ..............जब मनुष्य तुम्हारी गोद में खेलना चाहता है ,चिडिया चाँद पर चहकना चाहती है और बच्चे चाँद पे लुका -छिपी करना चाहते है । तो तुम ?अपना स्वार्थ दिखा रहे हो । ऐसा मत करो ?मनुष्य तुम्हे भी हरा-भरा और स्वच्छ रखेगा , तुम्हारी शीतलता बनी रहेगी ।