Monday, April 20, 2009

वो लम्हे.......वो बातें .


भौगोलिक पर्यटन मेरे जीवन की सबसे सुखद और सबसे परिवर्तन शील समय रहा । जिसने मुझे यह अहसास दिलाया कि मैं इन दिनों में एक नए दुनिया में प्रवेश कर चुका हूँ । ............जहाँ सुरम्य प्राकृतिक सोंदर्य अपनी अनुपम छटा बिखेर रही है । जहाँ सागर कि उठती - गिरती लहरे मेरे अन्तर्मन् को बार - बार उद्वेलित कर रही थी और सागर कि आगोश में समाया हुआ सूरज अपनी विछिन्न हो रही लालिमा से मेरे ह्रदय में अमिटछाप छोड़ रहा था । ...... to kahin दूर maanjh कीkashti को किनारा देती hooi shital हवा स्वर lahario में bahi ja रही थी । to dusari तरफ़ warshant की रात "नव warsh " के प्रभात के आने की खुशी में तारों की mahfil sajaye baithi थी । ..... मई इस समय chhayawadi vicharon की daor से गुजर रहा हूँ । मेरे jehan पर prakrit का shabanami spars , मुझे atit की aor ले ja रहा है और मैं usaki तरफ़ khincha चला ja रहा हूँ ....................... ।

Friday, April 17, 2009

चप्पल की अभिलाषा

बहन जी ने जब से तिलक तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार ।की बातों को जब से हवा दिया है , तब से जूतेऔर चप्पलों की अभिलाषाएं जाग उठी है ।......... आज हर चप्पल किसी नामी - गिरामी व्यक्ति पर ही समर्पित होना चाहता है । अब समस्या यह है की कौन इनकी इच्छा को पुरी कराएँ , लेकिन कोई किसी का भाग्य नही छीन सकता .... धरती वीरों से खाली नही है जिसने जार्ज बुश ,नविन जिंदल , पी.चिदंबरम और अडवानी जैसे महा मानवों को जन्म दिया । अगर ये सज्जन धरती पर अवतरित न होते तो सायद चप्पलो की इच्छा पूरी न हो पाती। यही वो महा मानव है जिन्होंने भीड़ के बिच में भी चप्पलो को सहर्ष स्वीकार किया है । आज चप्पलो में भी चलने चलने को लेकर काफी प्रतियोगिता बढ़ गयी है । कोई भी चप्पल अपनी बखान सुनाये बिना नहीं रह पता क्योकि अब समय चप्पोलो का आ गया है ..................हर चप्पल पीर से निकल कर सर पे विराज मान होना चाहता है वो भी किसी पापुलर आदमी पर । अगर चप्पलो की इच्छा ऐसे ही सर पर चढ़ कर बोलेगी तो आने वाले समय में हर आदमी को चप्पल खाने के लिए तैयार रहना होगा । आखिर कब तक आदमी चप्पल की अभिलासा पूरी करने के लिए लहू लुहान होता रहेगा .....................?

Thursday, April 16, 2009

इसके जूते कौन खायेगा ?

मैं हूँ कौन

अरे दीवानों मुझे पहचानों